Menu
blogid : 2381 postid : 1334462

तुम सिर्फ मर्यादा की मूरत हो !!

कुछ बदलना है !
कुछ बदलना है !
  • 2 Posts
  • 0 Comment
नारी सिर्फ “सुंदरता” ही तुम्हारा सीमित शस्त्र है. वीर, पराक्रमी, शक्तिशाली, धनवान ये शब्द तो पुरुष प्रधान है,  ये शब्द तुम्हे कतई  सुशोभित नहीं करते।  तुम्हारी “सुंदरता” के समक्ष ही एक वीर, पराक्रमी, शक्तिशाली, धनवान पुरुष झुक सकता है.
और एक बार उस पुरुष ने तुम्हे जीत लिया तो तुम्हारी सुंदरता भी उसकी गुलाम बन जाती है. वो पुरुष तुम्हारी सुंदरता की इतनी रक्षा करेगा की अगर तुम चौखट से भी झांकी तो पर्दा, बुरका, और मर्यादा का चोला पहनकर।
“यत्र नारी पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” – जिस घर में नारी की पूजा होती है वहा देवता वास करते है।  लेकिन नारी को तो यही पता होता है की जिस घर वो जा रही है वहॉ के लोग ही अब उसके देवता है.
तो हे नारी ! तुम कभी कोई ऐसी जिज्ञाषा मत करना जिससे तुम्हारे देवता अप्रसशन्न हो जाये, क्योंकि  तुम भली भाँति जानती हो कि तुम्हारे देवता में ऐसी शक्तिया है की उनके द्वारा बोले  गए मात्र तीन “तलाक” शब्द ही तुम्हे समाज से निष्काषित कर सकते है.
भला कैसे तुम घर से निकल कर बाहरी पुरषो के साथ काम कर सकती हो।  तुम ना तो वीर हो ना ही शक्तिशाली! कही किसी दूसरे वीर, पराक्रमी, शक्तिशाली, धनवान पुरुष ने तुम्हे जीत लिया तो तुम्हारे देवता की तो हार हो जाएगी।
तुम सिर्फ सुंदरता और मर्यादा की मूरत हो ! ऐसा मैंने नहीं धर्मो तक ने कहा है !
आज समाज प्रगति के लिए सिर्फ शिक्षा के पाठ्यक्रम में परिवर्तन करता है ! क्या किसी को “धर्मो ” में सुधार और उसके नए संस्करण की जरुरत महसूस नहीं होती? नारी तुम्हे भी नहीं?

नारी सिर्फ “सुंदरता” ही तुम्हारा सीमित शस्त्र है. वीर, पराक्रमी, शक्तिशाली, धनवान ये शब्द तो पुरुष प्रधान है,  ये शब्द तुम्हे कतई  सुशोभित नहीं करते।  तुम्हारी “सुंदरता” के समक्ष ही एक वीर, पराक्रमी, शक्तिशाली, धनवान पुरुष झुक सकता है. और एक बार उस पुरुष ने तुम्हे जीत लिया तो तुम्हारी सुंदरता भी उसकी गुलाम बन जाती है. वो पुरुष तुम्हारी सुंदरता की इतनी रक्षा करेगा की अगर तुम चौखट से भी झांकी तो पर्दा, बुरका, और मर्यादा का चोला पहनकर।

“यत्र नारी पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” – जिस घर में नारी की पूजा होती है वहा देवता वास करते है।  लेकिन नारी को तो यही पता होता है की जिस घर वो जा रही है वहॉ के लोग ही अब उसके देवता है.

तो हे नारी ! तुम कभी कोई ऐसी जिज्ञाषा मत करना जिससे तुम्हारे देवता अप्रसशन्न हो जाये, क्योंकि  तुम भली भाँति जानती हो कि तुम्हारे देवता में ऐसी शक्तिया है की उनके द्वारा बोले  गए मात्र तीन “तलाक” शब्द ही तुम्हे समाज से निष्काषित कर सकते है.

भला कैसे तुम घर से निकल कर बाहरी पुरषो के साथ काम कर सकती हो।  तुम ना तो वीर हो ना ही शक्तिशाली! कही किसी दूसरे वीर, पराक्रमी, शक्तिशाली, धनवान पुरुष ने तुम्हे जीत लिया तो तुम्हारे देवता की तो हार हो जाएगी. तुम सिर्फ सुंदरता और मर्यादा की मूरत हो ! ऐसा मैंने नहीं धर्मो तक ने कहा है !

आज समाज प्रगति के लिए सिर्फ शिक्षा के पाठ्यक्रम में परिवर्तन करता है ! क्या किसी को “धर्मो ” में सुधार और उसके नए संस्करण की जरुरत महसूस नहीं होती? नारी तुम्हे भी नहीं?

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh